लेखनी प्रतियोगिता -22-Feb-2022
जानवरीयत (लघुकथा)
वृद्धाश्रम के दरवाज़े से बाहर निकलते ही उसे किसी कमी का
अहसास हुआ, उसने दोनों हाथों से अपने चेहरे को टटोला और फिर पीछे पलट कर खोजी
आँखों से वृद्धाश्रम के अंदर पड़ताल करने लगा। उसकी यह दशा देख उसकी पत्नी ने माथे पर लकीरें
डालते हुए पूछा, "क्या हुआ?"
उसने बुदबुदाते हुए उत्तर दिया,
"अंदर कुछ भूल गया..."
पत्नी ने उसे समझाते हुए कहा,
"अब उन्हें भूल ही जाओ, उनकी देखभाल भी यहीं बेहतर होगी। हमने फीस देकर अपना फ़र्ज़ तो अदा कर ही दिया
है, चलो..." कहते हुए
उसकी पत्नी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे कार की तरफ खींचा।
उसने जबरन हाथ छुड़ाया और ठन्डे लेकिन द्रुत स्वर में बोला, "अरे! मोबाइल फोन अंदर भूल
गया हूँ।"
"ओह!" पत्नी
के चेहरे के भाव बदल गए और उसने चिंतातुर होते हुए कहा,
"जल्दी से लेकर आ
जाओ, कहीं इधर-उधर हो
गया तो? मैं घंटी करती हूँ, उससे जल्दी मिल जायेगा।"
वह दौड़ता हुआ अंदर चला गया। अंदर जाते ही वह चौंका,
उसके पिता, जिन्हें आज ही
वृद्धाश्रम में दाखिल करवाया था, बाहर बगीचे में उनके ही घर के पालतू कुत्ते के
साथ खेल रहे थे। पिता ने उसे पल भर देखा और फिर कुत्ते की गर्दन को अपने
हाथों से सहलाते हुए बोले, "बहुत प्यार करता है मुझे, कार के पीछे भागता हुआ आ गया... जानवर है ना!"
डबडबाई आँखों से अपने पिता
को भरपूर देखने का प्रयास करते हुए उसने थरथराते हुए स्वर में उत्तर दिया, “जी
पापा, जिसे जिनसे प्यार होता है... वे उनके पास भागते हुए पहुँच ही जाते हैं...”
और उसी समय उसकी पत्नी द्वारा की हुई घंटी के स्वर से मोबाइल फोन बज उठा। वो बात और थी कि आवाज़ उसकी पेंट की जेब से ही आ रही थी।
Arshi khan
03-Mar-2022 03:36 PM
Wah
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Inayat
03-Mar-2022 01:36 PM
बहुत खूब
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Pamela
01-Mar-2022 06:52 PM
Nice
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